गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

यात्रा

  साल    दर   साल   बीते
समय  अभी भी हमारी परीक्षा ले रहा था
हम  अपने- आपको
अपनी - अपनी कसौटियों पर कस    रहे थे
और एक दूसरे को
हारा  हुआ घोषित  कर रहे थे
न  जाने कहाँ से
हम दोनों के बीच
कई बहाने आ खड़े हुए थे
और हम दोनों
उन बहानों  की डोर पकड़े
एक सदी की यात्रा पर चले गए थे /

जहाँ से तुम्हें जाना था
उस कत्थई दुनिया में
जहाँ रिश्तों के धागों में बंधा
एक गुलाबी पेड़ खड़ा था
तुम हँस रहे थे
तुम्हारी  हँसी
पृथ्वी को   ढाढ़स  दे  रही थी
बची रहेगी हरियाली
और बचा रहेगा वह आकाश
जहाँ तोतों के झुंड
अपने पंखों से
नया इतिहास रच रहे होंगे /

मुझे भी जाना था
पृथ्वी के उस आखिरी छोर  पर
जहाँ एक बूढ़ा अपनी बुझती हुई आँखों से
अपने बचपन का इंतज़ार कर रहा था
याद कर रहा था वह
अपने पुरखों को , अपने खेतों को
शायद  अब वह अकेला था
पुरखे , खेत
इतिहास बन चुके थे /


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