एक मुट्ठी भर रंग
फ़ेंक कर सूरज
दूर कहीं छिपकर
सोने चला गया
उस रंग से
और वह चूनर
ओढ़ संध्या धीरे - धीरे
उतर आई धरती के आँगन में
वृक्षों की फुनगियों ने
सिर हिलाकर स्वागत किया
और लगी गाने मंगल गान
उस गान में डूब गई
दिन भर की थकान /
तभी दूर कहीं झिलमिलाने लगा
सपनों का संसार
तारे उग आये
चाँद आसमान के उस कोने में खड़ा
मुस्कुराने लगा /
शायद कोई आने वाला है .........
चुपके से कान में
लजाती हुई हवा कह गई ....
१८.१०.11
फ़ेंक कर सूरज
दूर कहीं छिपकर
सोने चला गया
उस रंग से
आसमान ने अपना चूनर
रंग लिया और वह चूनर
ओढ़ संध्या धीरे - धीरे
उतर आई धरती के आँगन में
वृक्षों की फुनगियों ने
सिर हिलाकर स्वागत किया
और लगी गाने मंगल गान
उस गान में डूब गई
दिन भर की थकान /
तभी दूर कहीं झिलमिलाने लगा
सपनों का संसार
तारे उग आये
चाँद आसमान के उस कोने में खड़ा
मुस्कुराने लगा /
शायद कोई आने वाला है .........
चुपके से कान में
लजाती हुई हवा कह गई ....
१८.१०.11
शायद कोई आने वाला है .........
जवाब देंहटाएंचुपके से कान में
लजाती हुई हवा कह गई
बहुत ही सुंदर तरीके से आपने अपनी भावों को सजाकर प्रस्तुत किया है । सांध्य- सुंदरी का भा कुछ आभास मिला । दीपावली आने वाली है, इसी बहाने आपको दीपावली की शुभकामनाएं । धन्यवाद । समय मिले तो मेरे पोस्ट पर आकर मेरा भी मनोवल बढाएं।
पुन:अनुरोध है कि मेर नए पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाने की कृपा करें । आप जैसे प्रबुद्ध लोगों की प्रतिक्रिया शायद मेरी अभिव्यक्ति को एक नई दिशा और दशा प्रदान करने में सहायक सिद्द हो सके। दीपावली की अशेष शुभकामनाओं के साथ-सादर ।
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