इस शहर को इसकी नींव की सारी
ऊष्मा समेत
यहाँ से उठाओ
और रख दो मेरे कंधे पर
मैं इसे ले जाना चाहता हूँ किसी मेकेनिक के पास
मुझे कोई भ्रम नहीं
कि मैं इसे ढोकर पहुंचा दूंगा कहीं और
या अपने किसी करिश्मे से
बचा लूँगा इस शहर को
मैं तो बस इसके कौओं को
उनका उच्चारण
इसके पानी को
उसका पानीपन
इसकी त्वचा को
उसका स्पर्श लौटाना चाहता हूँ
मैं तो बस इस शहर की
लाखोंलाख चींटियों की मूल रुलाई का
हिंदी में अनुवाद करना चाहता हूँ /
ऊष्मा समेत
यहाँ से उठाओ
और रख दो मेरे कंधे पर
मैं इसे ले जाना चाहता हूँ किसी मेकेनिक के पास
मुझे कोई भ्रम नहीं
कि मैं इसे ढोकर पहुंचा दूंगा कहीं और
या अपने किसी करिश्मे से
बचा लूँगा इस शहर को
मैं तो बस इसके कौओं को
उनका उच्चारण
इसके पानी को
उसका पानीपन
इसकी त्वचा को
उसका स्पर्श लौटाना चाहता हूँ
मैं तो बस इस शहर की
लाखोंलाख चींटियों की मूल रुलाई का
हिंदी में अनुवाद करना चाहता हूँ /
धन्यवाद इसके लिए। बढिया।
जवाब देंहटाएंकेदारनाथ सिंह की कविताएं समय के साथ संवाद करती हुई कविताएँ हैं । सटीक कथ्य!
जवाब देंहटाएंइस कविता के माध्यम से आपने बहुत सुन्दर तरीके से कवि और उसके रचनाकर्म से अच्छी तरह से परिचित कराया है । उनकी कविता 'नए कवि का दुःख' कितनी सुन्दरता से संवाद करती हुई हृदय को झकझोरती है-
"दुख हूँ मैं एक नये हिन्दी कवि का"
बाँधो
मुझे बाँधो
पर कहाँ बाँधोगे
किस लय, किस छन्द में?
ये छोटे छोटे घर
ये बौने दरवाजे
ताले ये इतने पुराने
और साँकल इतनी जर्जर
आसमान इतना जरा सा
और हवा इतनी कम कम
नफरतयह इतनी गुमसुम सी
और प्यार यह इतना अकेला
और गोल -मोल
बाँधो
मुझे बाँधो
पर कहाँ बाँधोगे
किस लय , किस छन्द में?
क्या जीवन इसी तरह बीतेगा
शब्दों से शब्दों तक
जीने
और जीने और जीने और जीने के
लगातार द्वन्द में?
(-केदारनाथ सिंह)