मीडिया की भूमिका कभी -कभी बड़ी चौकानेवाली होती है / अभी हाल ही में मीडिया ने जिस तरीके से अन्ना हजारे के अनशन को लाईम लाइट में रखा उससे एक बात तो सिद्ध होती है कि मीडिया जिसे चाहे उसे जब चाहे हवा दे सकती है और उसके पक्ष में हवा बना भी सकती है /. अन्ना के अनशन को मीडिया ने ऐसा कवर किया कि लगा कि अब तो कोई क्रांति होकर ही रहेगी / लोगों के सर पर अनशन का जादू चला / लोग भ्रष्टाचार को ख़तम करने के लिये कमर कसने का अभिनय करने लगे / दोस्तों , इस अभिनय से कुछ होने वाला नहीं है / अभी देखिये अन्ना की यह मुहिम आंधी बनती है या पानी का बुलबुला ? अन्ना की बात करते समय हम उस औरत को भूल जाते हैं जो पिछले दस सालों से भूख हड़ताल पर है/ वह भी अनशन ही कर रही है/ मणिपुर की सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मीला सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटाने की मांग में वह अनशन पर बैठी हुई है पर हमारी बुद्धिमान और सजग मीडिया के पास वक्त नहीं है कि वह जाकर इस मुद्दे को लाइम- लाइट में लाये / असल में मीडिया भी उन्हीं मुद्दों को पकड़ती है जो सनसनाहट पैदा करती हैं/ यानी जो बिक सकता है खबरों के बाज़ार में वही मीडिया को पसंद आता है / अभी अन्ना का बाज़ार भाव ज्यादा है / इसीलिये अन्ना अभी समाचारों में बने रहेंगे /
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