रविवार, 8 मई 2011

ma tujhe salam

       माँ   तुझे सलाम

दर्द से कराहती वह
छट पटाती तड़पती
मृत्यु - शैय्या पर पड़ी
दिन गिन रही है ज़िन्दगी की
राह देख रही है मृत्यु की
जो उसे राहत देगी उस असहनीय  पीड़ा से
जो आजाद कर देगी उसे 
जीर्ण- शीर्ण कलेवर से
अनचाहे उदास , उखड़े हुए रिश्तों  से
अपनों - परायों से, गाँव -घर की स्मृतियों से /

वह भी साथ है में
जिसके साथ उसने
अपने जीवन के पैंतीस साल गुजारे थे 
साथ दिया था हर सुख में हर दुःख में /
 पर आज वह 
दवा की दो टिकिया दे 
अपना फर्ज निभा जाता है 
उसे फिक्र है उसकी गृहस्थी   
अब कौन संभालेगा ?
और वे सपूत
जो उसकी कोख से पैदा हुए  
 कहते  तो माँ हैं उसे
पर माँ के दुःख को अपना नहीं समझते /
उन्हें भी वक्त नहीं है आज
अपनी माँ के लिये 
वही माँ जो कल तक 
सब कुछ थी उनके लिये 
पर आज वे  डिस्टरब   होते हैं
माँ की कराह से 
परेशान होते हैं दवाइयों    की गंध से /
मन बेचैन है , व्यथित  है
शू न्य  में मनो 
माँ की आँखे सवाल करती हैं 
क्या खून पानी से भी पतला हो गया है ?    
  

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