सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

दुख की गठरी

हर किसी के पास 
दुख की गठरी है 
किसी की छोटी है तो 
किसी के हिस्से बड़ी आई है .....

सब अपनी गठरी संभाले ....
एक दूसरे की गठरी को तौल रहे हैं 
और 
अपनी गठरी को एक दूसरे से भारी सिद्ध कर रहे हैं 

और दुख गठरी में बैठा उदास है ......
सोच रहा है 
कब गठरी खुले 
और वह चैन की सांस ले ///

रोज - रोज की नाप- तौल से 
ऊब चुका है वह



आँसुओं की सीलन 
अब बर्दाश्त  नहीं होती /

सोचता है 
कुछ दिनों के लिए 
परिंदों  की   तरह 
उड़ आया जाए.कहीं किसी दूर देश में ....

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