मेज की दराज में
अपने दुखों को सहेज कर रखा हूँ
न जाने कैसा लगाव हो गया है इनसे
छोड़ने का मन ही नहीं करता /
साथी रहे हैं ये मेरे
लंबे उदास दिनों के
हारते हुए हर क्षण में
इन्हीं को अपने पास खड़े पाया है /
अगर ये दुख न होते तो
कैसा होता हमारा जीवन ?
कैसे कटते वे लंबे रास्ते
जिन पर चलने के लिए
मुझे अकेला छोड़ दिया गया था /
लोग कारवाँ के साथ
गुबार उड़ाते चले गये थे
और.... मैं
हाशिए पर टंगा रहा
अपने दुखों के साथ /
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