बुधवार, 31 अक्टूबर 2012


मैं अपने उस गांव में लौट जाना चाहती हूं जहां मैं अपना बचपन चालीस साल पहले छॊड. आई थी/अपने गांव जाकर मैं उसकी गॊद में मरना चाहती हूं/ अपने निर्वासन की लंबी थका देने वाली यात्रा कॊ उस मांझी के पुल के तले  खत्म करना चाहती हूं जॊ मेरे बचपन का सबसे बडा अजूबा था/बाबा और आजी का हाथ पकडे उस पुल से गुजरना मानॊ एक सदी की यात्रा करना था/बाबा और आजी उस समय मेरे लिये मेरे प्राण थे/ उनसे ही मेरी सारी दुनिया थी/ उस दुनिया में मेरे घर का माटी का आंगन महकता था, महुआ का मठिया वाला पेड़ गमकता था और वह मिल्की का आमॊं का बागीचा हमें सम्मॊहित कियॆ रखता था/ बाबा के साथ भरी दुपहरी खेतॊं में मन का रमना, आजी के साथ गंगा मईया में नहाना और सती मईया की पूजा के लिये मीलॊं पैदल चलती गांव भर की दादी- आजी की टॊलियॊं में अपनी आजी की डॊलची पकडे.पैदल चलना और जब चलते चलते गॊर दुखा गय़े तॊ आजी की गॊदी एकमात्र सहारा/


अपनी आजी कॊ याद करते हुए आंखें भर आती हैं /  मेरी आजी हिन्दुस्तान की उन औरतों की याद दिलाती  हैं जिनका सारा जीवन अभाव से अभिशापित होता है , संघर्ष करते करते जिनकी पूरी जिन्दगी कट जाती है, एक टुकडा़  सुख के लिये वे सारी उम्र रास्ता  जॊहती रहती हैं पर सबसे सुकून देने वाली बात यह हॊती है कि हिन्दुस्तान की ये औरतें कभी हिम्मत नहीं हारतीं/ चेहरे पर एक मासूम- सी हंसी जो इन्हें जीवटता प्रदान    करती है/ हम इन औरतॊं से कितना कुछ सीख सकते हैं/ मेरी आजी जिनके पास पूंजी के नाम पर केवल एक छोटा सा बक्सा था और आजी का वह बक्सा हमारे लिये एक जादुई पिटारा था/ आजी से हम जिद करते कि वे अपना बक्सा खॊलें/ उस बक्से में आजी की अपनी चीजॊं के नाम पर केवल एक जिउतिया रहती थी, कपडॊं के कुछ टुकड़े, कुछ पोटलियां/ बस उस बक्से की यही दुनिया थी / उस बक्से में आजी कभी ताला नहीं लगाती थीं/ आजी व्रत , उपवास ,पूजा- पाठ बहुत करती थीं/ इसका कारण यह नहीं था कि वे  धर्म भीरू महिला थीं बल्कि घर के अभाव से बचने का यह सुगम रास्ता था तथा अपनी संतानॊं की सुखद कामना के लिये उपासना की शरण में जाने से बेहतर रास्ता और कॊई था भी नहीं/ निर्जला उपवास तॊ उनकी दिन चर्या में शामिल था/ सारे देवताऒं कॊ वे पूजतीं/ पता नहीं कौन- से देवता उनकी पूजा से खुश हॊकर उनकी संतानॊं कॊ अपना आशीश दे दें/ 

1 टिप्पणी:

  1. kya koi baba aisa hote hai koi pita aisa hota hai par ek nati aur ek beta jarur hota hai jo nirjala ekadashi apne wasulo ke liye karta hai jo anginat hota jo marna to chahta hai par kashi me nahi maghar me jishse wah es nirjala ekadashi ka hamesha sahjatri rahe

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