पतझड़
सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
पुरखों का घर बेचकर
वे जा चुके थे....
अमरूद का पेड़
चुपचाप वहाँ खड़ा था
उसे कहीं नहीं जाना था
अपनी ज़मीन से उखड़ना
उसे मंजूर नहीं था /
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें