विजयदेव नारायण साही की अंतिम काव्य कृति " साखी " की अंतिम कविता " प्रार्थना : गुरु कबीरदास के लिए " से कुछ पंक्तियां ---
दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इस दहाड़ते आतंक के बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिंता न हो
कि इस बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा ?
.................
यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ /
दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इस दहाड़ते आतंक के बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिंता न हो
कि इस बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा ?
.................
यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ /
विजयदेव नारायण साही जी की कविता प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद । हमें यही आशा रहेगी कि भविष्य़ में भी आप साहित्य के इन प्रकाशस्तंभों की कृतियों को प्रस्तुत करती रहेगी । नव वर्ष 2012 की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ...प्रेम सागर सिंह।
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट डॉ.धर्मवीर भारती एवं अन्य पिछले पोस्टों पर आपके बहुमूल्य सुझाव एवं प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।