दोस्तों , इस कविता की कुछ पंक्तियाँ .......
दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इस दहाड़ते आतंक के बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिंता न हो
कि इस बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा /
.....................
यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ /
दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इस दहाड़ते आतंक के बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिंता न हो
कि इस बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा /
.....................
यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ /
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