गाँव , तुम कहाँ खो गए ?
बरसों जहाँ तुम्हें छोड़ आई थी
तुम वहां तो नहीं हो !
पर
मेरी स्मृति के उजले पन्नों पर
इतिहास
के पुराने खंडहरों की तरह दर्ज हो /
जहाँ अवकाश पाते ही
मन लम्बी छुट्टियों पर चला जाता है
तलाशने लगता है
कुछ विस्मृत हुए लोगों को /
दोहराने लगता है
कुछ भूले हुए किस्सों को
भूले हुए अनगिनत चेहरे
फ़िल्म की रील की तरह
चलने लगते हैं /
बूढी आजी , बाबा , वह महुआ का पेड़
आम का बगीचा , माटी की सोंधी गंध
वह चार बीघा खेत, वह अपना आँगन , वह दुआर /
कहते हैं लोग कि
अब तुम नहीं रहे
पर विश्वास नहीं होता
गांव तुम मर नहीं सकते /
हर पल तो तुम्हें
अपने सीने में धड़कता हुआ पाती हूँ
कैसे कहूँ कि तुम नहीं रहे ?
बरसों जहाँ तुम्हें छोड़ आई थी
तुम वहां तो नहीं हो !
पर
मेरी स्मृति के उजले पन्नों पर
इतिहास
के पुराने खंडहरों की तरह दर्ज हो /
जहाँ अवकाश पाते ही
मन लम्बी छुट्टियों पर चला जाता है
तलाशने लगता है
कुछ विस्मृत हुए लोगों को /
दोहराने लगता है
कुछ भूले हुए किस्सों को
भूले हुए अनगिनत चेहरे
फ़िल्म की रील की तरह
चलने लगते हैं /
बूढी आजी , बाबा , वह महुआ का पेड़
आम का बगीचा , माटी की सोंधी गंध
वह चार बीघा खेत, वह अपना आँगन , वह दुआर /
कहते हैं लोग कि
अब तुम नहीं रहे
पर विश्वास नहीं होता
गांव तुम मर नहीं सकते /
हर पल तो तुम्हें
अपने सीने में धड़कता हुआ पाती हूँ
कैसे कहूँ कि तुम नहीं रहे ?
गांव पर अब शहर का प्रकोप बढ़ गया है।
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गाँव को अब गाँव बनाना संभव नहीं लगता है क्योंकि गाँव से शहर आने वाला वापस नहीं जाता है। गाँव वाले भी किसी को वापस नहीं देखना चाहते हैं। अनेक कारणों में से जायदाद का बँटवारा मुख्य है।
जवाब देंहटाएंकुछ दिन में गांव का अस्तित्व भी नही रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट "अभिशप्त जिंदगी" पर आपके कमेंट की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह कविता।
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