अन्ना और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार करना आखिरकार सरकार की सबसे बड़ी भूल साबित हुई / सरकार ने यह जो फैसला किया है यह अपने आप में दिवालियापन का सूचक है / सरकार का यह फैसला इस बात का प्रमाण है कि सरकार अन्ना से कितनी भयभीत है / महज १६- १७ घंटे में सरकार को अक्ल आ गई और अन्ना को रिहाई करने के लिए दिल्ली पुलिस को आदेश देना पड़ा /
पर समय हाथ से निकल चुका है / अब कमान अन्ना के हाथ में जा चुकी है और अन्ना ने सरकार को पटकनी देते हुए साफ -साफ और स्पष्ट रूप से रिहा होने से इंकार कर दिया है / यहाँ अन्ना ने एक नजरविहीन उदाहरण देश के सामने रखा है/ उन्होंने बिना किसी शर्त के अपने आप को रिहा करने की बात पर टिके हुए हैं /वे शायद यह जानते हैं कि सरकार की मंशा ठीक नहीं है और उनका भी हस्र बाबा रामदेव की तरह हो सकता है / पर यह तो तय है कि अब अन्ना के इस गुगली पर सरकार बोल्ड हो चुकी है / सिर्फ सरकार की अड़ियल जिद की वजह से देश में एक तरह से नाटक का दौर चल रहा है / आज देश का बहुत बड़ा भाग अन्ना के साथ है/ उनके आन्दोलन में जनता अपनी रजामंदी जाहिर कर चुकी है/ अब कांग्रेस सरकार को चेत जाना चाहिए / अपनी गलतियों को स्वीकार कर लेना चाहिए / यह भी सोचने वाली बात है कि अगर लोकपाल बिल के घेरे में प्रधानमंत्री आ जायेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट जायेगा ? आप लोकतंत्र की बात करते हैं/ संसद की बात करते हैं तो इस लोकतंत्र में अगर एक चपरासी को भ्रष्टाचार के लिये दण्डित किया जा सकता है तो प्रधानमंत्री को छूट देने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है / चलिए अभी सियासत के बहुत सारे रंग देखने बाकी है/ सत्ता के खिलाफ लड़ाई यक़ीनन बहुत कठिन है / अन्ना इस लड़ाई में अपनी पूरी ताकत के साथ उतर चुके हैं और इस लड़ाई में एक कारवां तो उनके साथ चल ही पड़ा है/
एक बात तो स्पष्ट है कि सारा मामला बाबा जैसा नहीं है। यह अन्ना जैसा है, जहां हर आदमी कहता है मैं अन्ना हूं। यानी अधिक संवेदनशील है। अन्ना के साथ जैसे-जैसे सरकारी अड़ंगे बढ़ेंगे, देश की जनता अन्ना के साथ होती चली जाएगी।
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बहुत सही कहा आपने/ अन्ना के आंदोलन की धार दिन पर दिन तेज होती जा रही है / अभी देखिए कारवाँ कहाँ- कहाँ से गुजरता है?
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