आजकल कश्मीर को लेकर जितनी बातें की जा रही हैं उतनी कभी नहीं हुई. तीन दिन पहले लेखिका अरुंधती रॉय ने जो कहा उसको लेकर बवाल मचा हुआ है. असल में अरुंधती रॉय यही चाहती थी. उन्हें खबरों में बना रहना अच्छा लगता है . खबरों में बने रहने के लिये कश्मीर और मावोवाद से अच्छा कोई मुद्दा हो ही नहीं सकता इसलिये इस पर जो भी कहा जाये बहस होनी ही है. असल में ये दोनों मुद्दे बड़े ही संवेदनशील हैं पर हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग को क्या कहा जाये ? जो अपने आपको जयादा प्रगतिशील और मानव अधिकारों का प्रवक्ता सिद्ध करने के चक्कर में बिना कुछ समझे बहुत कुछ कह जाते हैं. अगर इनका वश चले तो ये देश को तश्तरी में रख कर कट्टरवादी ताकतों को सौप दें असल में अरुंधती रॉय को इन मुद्दों पर कश्मीर- विरोधी और
सरकार - विरोधी विचार देकर अपने आप को नोबेल पुरस्कार दिलवाना है रॉय जी अगर आपकी बात मान ली जाये तो भारत का अस्तित्वा एक दिन मिट जायेगा / आप किनको कश्मीर देना चाहती हैं?. कश्मीर कश्मीरवालो का है और उसमें हिन्दू कश्मीरी पंडित , सिख और मुसलमान भी शामिल हैं. आप जैसी जागरूक लेखिका को कश्मीर की मूल समस्या पर बात करनी चाहिए . वहां के लोगो को रोजगार चाहिये , अमन चाहिए , आतंकवाद से मुक्ति चाहिए, इन मुद्दों पर बात करिए की कैसे कश्मीर के जरुरी सवालातो को सुलझाया जाये ?
क्या हमारे बुद्धिजीवी कभी हिम्मत कर पायेंगे की तुष्टिकरण की राजनीति को छोड़कर देश के आम आदमी चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान , के लिये लड़ेंगे न की बड़े पुरस्कारों के मोःह में अपने देश से ही बोलने की आजादी के नाम पर देश को फिर से बाटने की साजिश में शामिल होंगे / आपको विचार करना ही होगा?
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