रविवार, 2 जनवरी 2011
शनिवार, 18 दिसंबर 2010
छात्र राजनीति के नाम पर रक्तपात का दौर
पश्चिम बंगाल में जैसे - जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है वैसे - वैसे यहाँ का माहौल का तापमान बढ़ रहा है इस तापमान की आंच से छात्र भी नहीं बच paa रहे हैं बंगाल में छात्र राजनीति के नाम पर जो चल रहा है उसे सभ्य व् सुसंस्कृत समाज में स्वीकार नहीं जा सकता / यह कैसी राजनीति है जो हिंसा व् रक्तपात के जरिये अपना भविष्य तय करेगी / छात्र राजनीति करने के नाम पर आपस में एक दूसरे के खून के pyase बन रहे हैं - --इसे क्या चुपचाप स्वीकार जा सकता है? इस संदर्भ में राज्यपाल नारायणा की चिंता वाजिब है उन्होंने एकदम सही चिंता व्यक्त की है कि छात्र राजनीति के नाम पर हिंसा का खुला व् बर्बर प्रदर्शन सभ्य समाज के लिये शर्मनाक है/ राजनीति के नाम पर चल रहे रक्तपात को रोकने के लिये सभी को आगे आना पड़ेगा/ हमारा बहुत सीधा - सा सवाल है कि आखिर कब तक छात्र राजनीति के नाम पर अपनी पढाई- likhaii छोडकर राजनीतिक दलों के मोहरे बने रहेंगे / मैं यह नहीं कहती कि छात्र राजनीति से दूर रहें / बल्कि मेरा यह मानना है कि छात्रों को बड़ी संख्या में राजनीति में आना चाहिए ताकि समाज और देश को छात्र शक्ति से एक नई दिशा मिले और देश के राजनीति में जो सड़ांध आ गई है उसे छात्र शक्ति दूर कर सकें पर यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि छात्र राजनीति अवश्य करें पर स्वस्थ राजनीति न कि राजनीतिक मतविरोध के चलते एक दूसरे की हत्या करें , एक दूसरे पर जानलेवा हमला करें / मैं ऐसी राजनीति का पुरजोर विरोध करती हूँ जो हमारें युवा ताकत को अंधी खाई की तरफ धकेल रहा है / छात्र हमारे समाज की ताकत हैं और हम इस ताकत का दुरुप्रयोग होता हुआ देख रहे हैं अभी हाल में कॉलेज व् विश्वविद्यालयओं में छात्रों के बीच जिस प्रकार की विश्रिन्खालता व् अनुशासनहीनता बढ़ी है उसी के चलते जब वे राजनीति के छेत्र में उतरते हैं तो कॉलेज व् विश्वविद्यालय को रणछेत्र बना देते हैं पर यह सोचने वाली बात है कि इस रणछेत्र में बलि किसकी ली जा रही है ? - निसंदेह छात्रों की / क्यों छात्रों में राजनीतिक मतान्तर के चलते इतना आक्रोश बढ़ा है ? इस पर भी मनन करना चाहिए / क्या हम सभी का दायित्वा नहीं बनता कि अब हमें चुप नहीं बैठना चाहिए / सिर्फ हमें ही क्यों बल्कि सभी राजनीतिक दलों को अपने विरोध को दरकिनार करके आगे आना पड़ेगा / उन्हें निर्णय करना होगा कि अब वे छात्रों को स्वस्थ राजनीति करने के लिये प्रेरित करेंगे / आखिर खूनी राजनीति के नाम पर किसको क्या हासिल होगा ? समझ में नहीं आता/ इस खूनी राजनीति में सबकुछ खोना ही खोना है / अब नहीं चेते तो कब चेतेंगे ? यहाँ सिर्फ एक के चेतने से काम नहीं चलेगा सबको हाथ से हाथ मिलाकर उठना और चलना पड़ेगा क्योकि कल हमारी बारी भी हो सकती है /
शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010
भाषा आन्दोलन : नव राष्ट्र का जन्म - डॉ. शंकर तिवारी (५)
पाकिस्तानी हुकमरान पूर्वी पाकिस्तान को न स्वायत्तता देना चाहते थे और न उनकी भाषा को सरकारी स्वीकृति जिसके परिमाणस्वरुप अब यह आन्दोलन सड़क पर उतर चुका था/ इसका चरम रूप उस दिन दिखाई पड़ा जब ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा इस आन्दोलन के समर्थन में निकाले गए जुलूस पर पुलिस द्वारा गोली से फायरिंग की गई / यह दिन २१ फरवरी १९५२ था / भाषा का यह आन्दोलन बंगाली जाति के आत्मसम्मान का प्रतीक था और यह दिन जहाँ एक तरफ शोक व् दुःख का दिन था तो दूसरी तरफ बलिदान व् गौरव का भी दिन था/ बाँग्ला भाषा के सामान के लिये चार युवक् गोली खाकर शहीद हो गए थे / पूरा ढाका शहर इन चार युवकों - सलाम, बरकत, रफीक और जबबार के शहीदी रक्त से लाल हो गया था/ अपनी भाषा के लिये अपने जीवन को उत्सर्ग कर देना - यकीनन गर्व का विषय था , है और रहेगा/
अब आन्दोलन का रूख बदल चुका था सिर्फ अपनी भाषा ही बल्कि अब अपने लिये एक नए राष्ट्र की मांग भी उठने लगी / पश्चिम पाकिस्तान के अत्याचार से मुक्त होने का समय आ चुका था/ चार भाषा प्रेमिओं का बलिद्दन एक चिंगारी के रूप में सुलगकर क्रांति की बहुत बड़ी लौ बन चुकी थी/ अब आन्दोलन की धार को कुंद नहीं किया जा सकता/ अंततः १९७१ में यह मुक्ति-पर्व बांग्लादेश के जन्म के साथ संपन्न हुआ/ यह विश्व इतिहास में एक नजर विहीन घटना थी / साथ ही बांग्लादेश का जन्म उन लोगों के लिये करारा सबक था जो यह मानकर चल रहे थे कि धर्म के आधार पर विश्व के सभी मुसलमान एक हैं, उनके सांसारिक हित-अहित एक हैं, उनकी बोलचाल, भाषा , तहजीब सब एक जैसा है/ असल में भाषा का सम्बन्ध किसी धर्म से नहीं होता है बल्कि भाषा जातीयता का प्रतीक होती है/ भाषाई अस्मिता के लिये किया गया यह आन्दोलन विश्व के हर भाषा-प्रेमी को सदप्रेरित करता है और यह रौशनी देता है कि जब तक भाषाएँ जिन्दा रहेंगी तब तक हम जिन्दा रहेंगे /
अब आन्दोलन का रूख बदल चुका था सिर्फ अपनी भाषा ही बल्कि अब अपने लिये एक नए राष्ट्र की मांग भी उठने लगी / पश्चिम पाकिस्तान के अत्याचार से मुक्त होने का समय आ चुका था/ चार भाषा प्रेमिओं का बलिद्दन एक चिंगारी के रूप में सुलगकर क्रांति की बहुत बड़ी लौ बन चुकी थी/ अब आन्दोलन की धार को कुंद नहीं किया जा सकता/ अंततः १९७१ में यह मुक्ति-पर्व बांग्लादेश के जन्म के साथ संपन्न हुआ/ यह विश्व इतिहास में एक नजर विहीन घटना थी / साथ ही बांग्लादेश का जन्म उन लोगों के लिये करारा सबक था जो यह मानकर चल रहे थे कि धर्म के आधार पर विश्व के सभी मुसलमान एक हैं, उनके सांसारिक हित-अहित एक हैं, उनकी बोलचाल, भाषा , तहजीब सब एक जैसा है/ असल में भाषा का सम्बन्ध किसी धर्म से नहीं होता है बल्कि भाषा जातीयता का प्रतीक होती है/ भाषाई अस्मिता के लिये किया गया यह आन्दोलन विश्व के हर भाषा-प्रेमी को सदप्रेरित करता है और यह रौशनी देता है कि जब तक भाषाएँ जिन्दा रहेंगी तब तक हम जिन्दा रहेंगे /
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