उदासी की वह शाम बड़ी लंबी थी
जब सागर अपनी लहरों को रेत
पर धीमे से छोड़ आया था ....../
आकाश भी एक सिरे पर
थोड़ा अनमना - सा
मुँह लटकाए
कोई पुरानी कहानी पढ़ रहा था
और
चाँद अभी गुम सुम - सा बैठा
किसी क़िस्से की आस लिए
मेरे इंतजार में था ...../
मैं अभी -अभी लौटा था
उस पृथ्वी से मिलकर
जो बरसों से किसी की
तलाश में
अपनी ही धुन में
समय की परिक्रमा कर रही थी
और समय ....
न जाने किस मोड़ पर
मुड़कर
इतिहास के गलियारों में
बेचैन आत्माओं की तरह
भटक रहा था /
मैं भी भटकता रहा
उस सुख के कतरे के लिए
जो कपूर की तरह
मेरी हथेलियों से उड़ गया था /
अब मेरी झोली में
न कोई किस्सा था
न किसी के नाम कोई चिट्ठी
और न कोई उम्मीद की लोरी /
बन्जारे की तरह
कंधों पर मैं
अपना दुख लादे
आज सागर, आकाश, चाँद , पृथ्वी और समय से
विदा ले रहा हूँ
क्यूँ कि
उदासी की शामें
आज कल बड़ी लंबी हो रही हैं /
जब सागर अपनी लहरों को रेत
पर धीमे से छोड़ आया था ....../
आकाश भी एक सिरे पर
थोड़ा अनमना - सा
मुँह लटकाए
कोई पुरानी कहानी पढ़ रहा था
और
चाँद अभी गुम सुम - सा बैठा
किसी क़िस्से की आस लिए
मेरे इंतजार में था ...../
मैं अभी -अभी लौटा था
उस पृथ्वी से मिलकर
जो बरसों से किसी की
तलाश में
अपनी ही धुन में
समय की परिक्रमा कर रही थी
और समय ....
न जाने किस मोड़ पर
मुड़कर
इतिहास के गलियारों में
बेचैन आत्माओं की तरह
भटक रहा था /
मैं भी भटकता रहा
उस सुख के कतरे के लिए
जो कपूर की तरह
मेरी हथेलियों से उड़ गया था /
अब मेरी झोली में
न कोई किस्सा था
न किसी के नाम कोई चिट्ठी
और न कोई उम्मीद की लोरी /
बन्जारे की तरह
कंधों पर मैं
अपना दुख लादे
आज सागर, आकाश, चाँद , पृथ्वी और समय से
विदा ले रहा हूँ
क्यूँ कि
उदासी की शामें
आज कल बड़ी लंबी हो रही हैं /
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