सारी उम्र मैं दंभ भरता रहा
अपनी समझदारी का ...
अपनी ईमानदारी का....
अपनी सच्चाई का ......./
परंतु सब बेमोल पत्थरों की तरह
धरे के धरे रह गये थे
जब तुम खामोशी से
चली गईं थीं मेरी दुनिया से /
सारे फ़ैसलें , सारे मसलें
अनिर्णीत ही रहे
हमारे दरमियाँ ....
और मैं मन ही मन
खुश होता रहा क़ि
मैं जीत रहा हूँ
और तुम हार रही हो
चूक रही हो.../
परंतु तुम्हारा हारना
तुम्हारा चूकना
मेरे लिए मेरी भी हार थी
मेरा भी चूकना था /
आज मेरे पास
मेरी समझदारी भी है
मेरी ईमानदारी
मेरी सच्चाई भी
मेरे साथ ही है /
पर तुम नहीं हो ....
न जाने सारी उम्र तुम
मेरे बारे में क्या सोचती रहीं ..?
वक्त ही नहीं मिला
तुमसे यह पूछूँ क़ि
मैं कैसा लगता हूँ तुम्हें ?
तुम शायद मेरे इस सवाल पर
मुस्कुरा देती /
मैं तो यही चाहता था
क़ि
तुम खिलखिलाती रहो
एक नदी की तरह /
पर जैसे - जैसे दिन बीतते गये
मैं परिंदे की मानिंद
उड़ता रहा
कभी इस ठौर तो कभी उस ठौर /
मुझे बहुत कुछ पाना था
मैं पाता गया ......
मैं तुमसे दूर चला आया था
और तुम धीरे - धीरे
एक सर्द नदी बनती चली गईं थीं/
अपनी समझदारी का ...
अपनी ईमानदारी का....
अपनी सच्चाई का ......./
परंतु सब बेमोल पत्थरों की तरह
धरे के धरे रह गये थे
जब तुम खामोशी से
चली गईं थीं मेरी दुनिया से /
सारे फ़ैसलें , सारे मसलें
अनिर्णीत ही रहे
हमारे दरमियाँ ....
और मैं मन ही मन
खुश होता रहा क़ि
मैं जीत रहा हूँ
और तुम हार रही हो
चूक रही हो.../
परंतु तुम्हारा हारना
तुम्हारा चूकना
मेरे लिए मेरी भी हार थी
मेरा भी चूकना था /
आज मेरे पास
मेरी समझदारी भी है
मेरी ईमानदारी
मेरी सच्चाई भी
मेरे साथ ही है /
पर तुम नहीं हो ....
न जाने सारी उम्र तुम
मेरे बारे में क्या सोचती रहीं ..?
वक्त ही नहीं मिला
तुमसे यह पूछूँ क़ि
मैं कैसा लगता हूँ तुम्हें ?
तुम शायद मेरे इस सवाल पर
मुस्कुरा देती /
मैं तो यही चाहता था
क़ि
तुम खिलखिलाती रहो
एक नदी की तरह /
पर जैसे - जैसे दिन बीतते गये
मैं परिंदे की मानिंद
उड़ता रहा
कभी इस ठौर तो कभी उस ठौर /
मुझे बहुत कुछ पाना था
मैं पाता गया ......
मैं तुमसे दूर चला आया था
और तुम धीरे - धीरे
एक सर्द नदी बनती चली गईं थीं/
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