बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

 दीपावली रोशन कर देने वाला त्यौहार है  पर दिल के अँधेरे इन दीयों की रौशनी से कहाँ मिटते हैं //// /
 घिरा है घना  अन्धकार। .... दीये  तो जलाने  ही पड़ेंगे /

शनिवार, 11 अक्टूबर 2014

मेरी स्मृतियों की  सुरंग से निकलती है वह कोयले से चलनेवाली ,  काली -सी भारी- भरकम इंजन के  साथ नौ  डिब्बों  वाली रेलगाड़ी / रुकती है वह उस छोटे - से स्टेशन पर , जो इतिहास में बकुलहाँ स्टेशन के नाम पर दर्ज है / इसका नाम बकुलहाँ  क्यों पड़ा , इसके बारे में तथ्य तो नहीं मिलता  पर बड़े - बुजुर्गों के  मुँह से सुना है कि इस इलाक़े में सफेद बगुले बहुतायत में पाए जाते थे  इसीलिए इसका नाम   बकुलहाँ पड गया / वैसे इस इलाक़े में बबूल के पेड़ भी बहुत   हैं / यहाँ एक सिंगल लाइन हुआ करती थी अब तो डबल लाइन है / यह लाइन छपरा और बलिया को जोड़ती थी /  मेरी स्मृतियों का एक अहम हिस्सा मेरे इस पैतृक स्टेशन से जुड़ा हुआ है / मैं अपनी आजी के साथ इस स्टेशन से मिलने बार - बार आती थी / इसके पीछे बहुत बड़ी वजह थी  / और वह वजह थी इस स्टेशन के बगल से बहती हुई वह सरयू नदी / बचपन में हम उसे गंगा कहते थे / बचपन में  हमारे लिए सब नदियाँ गंगा ही थीं /  हमारी आजी बहुत व्रत और उपवास करती थीं / केवल आजी ही नहीं , बल्कि गाँव की बाकी औरतें भी उपवास और व्रत रखती थी / उपवास और व्रत के दौरान सब औरतें गंगा नहाने जाती थी / हमारे यहाँ नदियों और औरतों में  एक गहरा और आत्मीय  रिश्ता   होता था और है / हमारी अपनी पुरखन औरतें अपना सुख - दुख नदियों से बाँटा करती थीं /  उनके अधिकांश गीत नदियों को संबोधित करते हुए हैं / गंगा को पियरी धोती चढ़ाते  हुए औरतें उलासित होकर गीत गति थीं / बेटे - बेटी के  व्याह का न्योता देती थी और गुहार लगती थीं क़ि हे गंगा मैया ..अ  ईओ   हो /

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

अँधेरा है पर उम्मीद भी

 मेरे समय के शब्द
 जोखिम  उठाने से डरते हैं
एक घना अंधकार
धीरे - धीरे  उत्तर आया है
हमारी  जिह्वा/  पर
और
हम लगातार
एक लय  में सिर  हिलाते
कोरस में
कुछ  बुदबुदाते
चल पड़े हैं
उस  ईश्वर की शरण में
जो  हमारी ही तरह
असमर्थ है
बेबस है
निरीह है
वह भी जोखिम उठाने से डरता है /

सुना है
आजकल
वह भी
ताकतवरों  की ही सुनता  है
उनक हाँ में हाँ मिलाता  है
और
उनकी  प्रार्थनाओं पर
मौन होकर मुस्कुराता है /


ताकतवर। ...
और ताकतवर होते जा रहे हैं
बढ़ रही है उनकी ताकत
झुक रहे हैं सिर
उनके सज़दे  में
कट  रहीं हैं जीभें
नापी जा रही हैं गर्दनें /

पर यही  पूरा सच नहीं है    
एक सच और है
दुनिया का   सौंदर्य
बदलता है
उम्मीद से /
और मेरे पास
अँधेरा भी है
और उम्मीद भी /

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

पहाड़ भी रोते हैं।

 पहाड़ भी  रोते  हैं 
एक दूसरे से गले मिलकर 
जब कोई स्त्री 
अपने पति को खत लिखती है 
और फिर चुपचाप 
एक आईने में 
अपना चेहरा देखती है 
आईना बताता है 
समय की रफ़्तार 
और चुपके से 
स्त्री को धकेल देता है 
पहाड़ों के पास। … 

पहाड़ … 
खड़े हैं चुप्पी साधे  
उनके पास 
रोने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है।

पहाड़  भी रोते हैं।  





मंगलवार, 22 जुलाई 2014

यह कौन - सी जगह है दोस्तों। .... जहाँ अकेलेपन के  अलावा कुछ नहीं /  अकेलेपन को साथ देने के लिए ये पहाड़ हैं जो  न जाने कितनी सदियों से सर्द में लिपटे मौन  खड़े हैं / इनके पास न मेरे अकेलेपन का कोई हल है न  मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं /

इस बिराने में कुछ अच्छा नहीं लग रहा है / वक्त है कि  मानों कहीं ठहर - सा गया है / न पढ़ने में मन लग रहा है न कुछ सार्थक लिखने में / इस वीराने की रखवाली कर रही हूँ मैं /  अजीब - सा दौर है / आछे दिन पाछे गए /

मंगलवार, 6 मई 2014

ভালো আছ তো ?

ও  আমার মনে মানুষ। ..
ভালো আছ তো ?

আমি যে বিসর্জন দিলম সব মন প্রাণ তোমার প্রেমে / 
হারালাম নিজেকে তোমার  খোজে 



কথাযে যে  গেলে  তুমি 
সব বন্ধন ছিন্ন করে   ? 
কিছুই  চাই না
 কিছুই চাই না 
আমার মনে মানুষ 
তুমি সুধু ভালো থেক 
মন প্রাণ দিয়ে
 ভালো থেক ভালো থেক / 

रविवार, 13 अप्रैल 2014

माई री। ... मोरा माइका छूटा जाए।

  माई री। ...
मोरा  माइका  छूटा जाए। …

माटी की देह
माटी में मिल जाए
गगन घटा में
मोरा पाखी उड़ जाए

 माई री। ...
मोरा  माइका  छूटा जाए।






आन देस में
मन न लागे
मेढ बार - बार
टूट  जाए

 माई री। ...
मोरा  माइका  छूटा जाए।

संगी साथी सब बिराने
रैन  बसेरा का
न कोई
ठौर - ठिकाना /

  माई री। ...
मोरा  माइका  छूटा जाए।







 अपयश  देत
कलंक लगावे
ता - ता करके ताली
बजावे


 माई री। ...
मोरा  माइका  छूटा जाए।


माया  टूटी
काया छूटी 
टूटे सारे नेह के बंध 

 माई री। ...
मोरा  माइका  छूटा जाए।