ले - देकर एक जिंदगी हिस्से आई है और उसमें भी कुछ ऐसे लोग सौगात में मिले हैं जिन्होंने जिंदगी में दुःख और वीरानेपन के आलावा कुछ नहीं दिया/ लिखनेवाले ने क्या - क्या लिख दिया जिंदगी के पन्नों पर / कभी - कभी सोचती हूँ कि इस जिंदगी का क्या अर्थ है , इसके क्या मायने हैं / इसको समझ सकने में असमर्थ हूँ / एक सिरे को सुलझाती हूँ तो दूसरा सिरा उलझ जाता है / अजीब - सी उलझन में उलझती जाती है यह जिंदगी / कभी खीझती हूँ इस पर / फिर थक - हार कर इसकी हर सजा स्वीकार कर लेती हूँ / पढ़ने - लिखने के क्रम में यही सीखा कि नियति कुछ नहीं होती आपके करम सब कुछ होते हैं / पर जैसे - जैसे जिंदगी बड़ी होती गई वह मुझे सिखाती गई कि नियति से आप लड़ नहीं सकते / उसे हर मोड़ पर स्वीकारना पड़ता है / कर्म से सब कुछ जीता नहीं जा सकता / इन बातों से आप सोच सकते हैं कि मैं निराश हूँ। . आप सही हैं / मैं सचमुच निराश हो गई हूँ/ मुझे बड़ी- बड़ी बातें अब नहीं सुहाती / मेरे हिस्से जटिल जिंदगी आई है और। …। मेरे लिए कोई रास्ता रौशनी नहीं लेकर आता / ऐ.. जिंदगी तुझसे अब कोई चाह नहीं /
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें