रविवार, 13 अप्रैल 2014

वह आदमी

 समय के घोड़े बड़ी तेजी से भागे जा रहे थे
पता नहीं इन घोड़ों की लगाम
किनके हाथों में थी।







और
पृथ्वी
उदास थी
आज वह घूमते - घूमते उस आदमी से टकरा गई थी
जो अपने लुप्त इतिहास के सीलन भरे कैद से
ऊब कर
समुन्द्र के किनारे बैठा लहरें गिन  रहा था  /



वह खुश था
अपनी मुक्ति पर ....
उसके चेहरे पर
हँस रही थीं  रेत की मछलियाँ। ।

सागर की गोद में
उतरता सूरज
आश्वस्त था
वह आदमी हार नहीं मानेगा

भले ही
अदृश्य ताकतें
दिशाएं तय कर रहीं थीं
और समूची सदी
मौन होकर
एक  युग के अंत के
घोषणापत्र  पर हस्ताक्षर
 कर रही थी /


पर
दूर  कहीं किसी ने बंसी की धुन छेड़ी  थी









 चौंका था समूचा जंगल
और
दौड़ पड़ा था वह आदमी
उस मृगराज के पास
जो सदियों से
चाँद की दूधिया मुस्कान  में
अपनी ही मादक परिमल से
उन्मादित हो
जंगलों में पुकारा करता था
   अपनी प्रिया को /




इतिहास अपने पीले पन्नों में
न जाने
कितनी मौन आवाजों को
दबाये
एक सदी की यात्रा पर चला गया था
और वह आदमी
अभी भी
नुकक्ड़ पर बैठा
अपनी बेटी के लिए
एक सपना बुन  रहा है /

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